विवरण
डाउनलोड Docx
और पढो
क्या आप संतुष्ट हैं? यदि नहीं, तो आप पुनः पूछ सकते हैं। (धन्यवाद।) ठीक है, आपका स्वागत है। तो... मैं आपको बेहतर समझने में मदद करने के लिए एक और बात बताऊंगी। उदाहरण के लिए, क्या अतीत में हमारी दुनिया बहुत आदिम नहीं थी? हम गुफाओं में रहते थे और कच्चा (जानवर-जन) मांस खाते थे और आदि। हम तो आग जलाना भी नहीं जानते थे। हमारे पास कोई भी साधन नहीं थे, और फिर धीरे-धीरे, अधिक से अधिक प्रबुद्ध मास्टरों इस दुनिया में आये। प्रभु यीशु मसीह से पहले कई प्रबुद्ध मास्टरो हो गये। शाक्यमुनि बुद्ध से पहले भी कई प्रबुद्ध मास्टरो हुए थे। वे आये, धीरे-धीरे, एक-एक करके । भले ही वे सभी से बात करने के लिए दुनिया भर में घुमे नहीं, फिर भी, जहां कहीं भी वे बोलते, पूरा विश्व कंपन करता... वह कंपन फैल जाता है। तभी तो पूरी दुनिया को पता चलेगा। इसी तरह हमारा विश्व निरंतर प्रगति करता जा रहा है। आप इसे देख सकते हैं, है ना? इसलिए, आज हमारी दुनिया दो या तीन हजार साल पहले की तुलना में कहीं अधिक सुंदर और सुविधाजनक है।ठीक है।अब, मुझसे यह सवाल मत पूछिए: “मास्टर क्या बकवास कर रहे हैं? सोमालिया के लोग कैसे सुन सकते हैं कि वह यहां क्या कह रही हैं? अगर मैं आपसे यहां टेलीफोन पर बात करूं तो क्या आप मुझे सुन सकते हैं? क्या आप मुझे ताइवान (फॉर्मोसा) में सुन सकते हैं? हा! ठीक है। टेलीफोन क्या है? यह एक प्रकार का भौतिक उपकरण है जो यह सिद्ध करता है कि जब मैं यहां बोलती हूं तो आप इसे वहां भी सुन सकते हैं। यदि टेलीफोन न होता तो आप सुन नहीं पाते। मैं यहां बोल रही हूं, और आप मुझे ताइवान (फॉर्मोसा) में सुन सकते हैं। सौभाग्य से, अब हमारे पास टेलीफोन है। अब आप समझे। आप यह नहीं कह सकते कि सोमालिया के लोग मुझे नहीं सुन सकते। हमारी आत्माओं को टेलीफोन की जरूरत नहीं है। यह टेलीफोन दर्शाता है कि पूरी दुनिया मुझे सुन सकती है। और वैसे उपग्रहो भी हैं। जब अमेरिकी चंद्रमा पर गए तो हम यहां से उनसे संपर्क कर सके। उस यंत्र के कारण, आप जानते हैं कि वह हमें सुन सकता था। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारी यह आवाज पूरे ब्रह्मांड में गूंज सकती है! इसलिए हमारा शरीर, वाणी और मन बहुत स्वच्छ, सुंदर और पवित्र होना चाहिए। इसीलिए मैं तुमसे कहती हूं कि नियमों का पालन करो - हत्या मत करो, (पशु-लोग) मांस मत खाओ। क्योंकि हम एक हैं. हम जो कुछ भी करते हैं, पूरा ब्रह्मांड उन्हें देख सकता है।ठीक है। बस टेलीफोन को देखो और आपको पता चल जाएगा। आप वहां से मेरी आवाज सुन सकते हैं। क्यों? यह उस केबल के कारण नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरी आवाज वहां तक पहुंचाई जा सकती है। केबल तो बस एक उपकरण है जो इसे प्रसारित कर सकता है। यह आपके कान तक इसे पहुंचा सकता है। अन्यथा, केबल के कुछ टुकड़ों से केवल पांच या छह लोग ही इसे सुन सकते हैं। तो, जैसे टेलीविज; या टेलीविजन या रेडियो स्टेशन, जिसमें लाखों या अरबों लोग इसे सुन और देख सकते हैं। इससे पता चलता है कि मैं जो कह रही हूं वह सही है। सोमालिया, रूस - हर जगह - मैं जो कह रही हूं उन्हें सुन सकते हैं। यह उनकी आत्माएं सुन रही हैं, केवल उनके कान नहीं। ठीक है, अगर हम इसे बढ़ाना चाहते हैं, ताकि उनके दिमाग सुन सकें, उनके कान इसे स्पष्ट रूप से सुन सकें, तो हम टेलीविजन या टेलीफोन का उपयोग करते हैं। अन्यथा, आवाज तो पहले ही मौजूद है। वरना, टेलीफोन मेरी आवाज़ कैसे पकड़ सकता है? तो क्या वैज्ञानिक तथ्य ही पर्याप्त हैं? कोई और प्रश्न? हां, यह बहुत अच्छा है।(मास्टर, क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकती हूँ?) ज़रूर। आप चीनियों के पास बहुत सारे प्रश्न हैं। चीनी लोग पूछने में विशेषज्ञ होते हैं। पूछो। ठीक है। (बौद्ध धर्म के बारे में मेरी जानकारी के अनुसार, बौद्ध धर्म में "आत्मा" जैसा कोई शब्द नहीं है।) आपको “आत्मा” शब्द का प्रयोग क्यों करना है? यदि आप इसका उपयोग करना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं। (हाँ। ईसाई धर्म में, वे अक्सर “आत्मा” शब्द का प्रयोग करते हैं।) तब… (वे "आत्मा" शब्द का प्रयोग करते हैं।)(आपके दृष्टिकोण से, आप जिस पर विश्वास करते हैं, क्या बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म में कोई अंतर नहीं है?) कोई अंतर नहीं। मान लीजिए आप उस गिलास को "शुई"कहते हैं और मैं उन्हें "पानी"कहती हूँ - क्या यह ठीक है? बेशक, आप इसे चीनी भाषा में “शुई” कहने के आदी हैं। (लेकिन धार्मिक मान्यताएं बहुत भिन्न हैं।) वही। वही। (क्योंकि ईसाई धर्म में वे कहते हैं...) मैं आपको बताती हूं। इसलिए आप ऐसा सोचते हैं क्योंकि संस्कृत आपने नहीं सीखी है। बौद्ध धर्म में इसे संस्कृत में “आत्मा” लिखा जाता है। “आत्मा” का अर्थ है सोल। चीनी भाषा में इसका अनुवाद “आत्मा” है। समझे? आत्मा। (आध्यात्मिक जागरूकता।) वो आत्मा। नहीं। “आध्यात्मिक जागरूकता” नहीं। इसीलिए उन्होंने “महात्मा” लिखा, जिसका अर्थ है “महान आत्मा।”(ईसाई धर्म में कहा जाता है कि उद्धार पाने के लिए आपको ईश्वर पर निर्भर रहना होगा।) हाँ। (क्या ऐसा नहीं है?) हाँ। (लेकिन बौद्ध धर्म में, जैसा कि आपने अभी कहा, हमें अपनी शक्ति पर ही निर्भर रहना पड़ता है।) “आपकी अपनी शक्ति” आप स्वयं हैं, जो कि ईश्वर है। भगवान् हमारे अपने हैं... हमारा मूल स्वभाव। हम परमेश्वर से हैं। (हाँ। लेकिन ईसाई धर्म में कई रीति-रिवाज हैं।) बिल्कुल… (इसलिए हमें आराधना और प्रार्थना करनी होगी।) हाँ। (प्रार्थना करनी होगी।) हाँ। (अतः यह वास्तव में बाहरी शक्ति पर निर्भर है, क्योंकि यह स्वामी और सेवक के बीच का संबंध है।) मुझे पता है कि आपका क्या आशय है। तो फिर, मैं आपसे पूछता हूं: क्या आपके बौद्ध मास्टर भी आपको बुद्ध की पूजा करने के लिए मंदिरों में जाने के लिए नहीं कहते हैं? एक ही बात। आप जाओ और बुद्ध की पूजा करो और आशीर्वाद मांगो। दोनों ग़लत हैं।आपको अपने आप से प्रार्थना करनी चाहिए; आपको मंदिर या चर्च जाने की ज़रूरत नहीं है। हालाँकि, अब जब आप मुझे यह कहने के लिए मजबूर कर रहे हैं, तो वे मुझे डांटेंगे और कहेंगे कि मैं विधर्मी हूँ! और वे कहेंगे कि मैं ग़लत बात कर रही हूँ। वास्तव में, शाक्यमुनि बुद्ध बुद्ध बनने के लिए किसी मंदिर में नहीं गए थे, न ही [प्रभु] ईसा मसीह ने ईश्वर से संवाद करने के लिए किसी चर्च का निर्माण किया था। उनके निधन के बाद ही लोगों ने उन स्मारक हॉलों का निर्माण किया, और फिर सभी लोग पूरे दिन एक साथ इकट्ठा होते थे... और फिर अधिकाधिक अनुष्ठान, और अधिकाधिक प्रार्थनाएं। सच्चाई तो यह है, जब [प्रभु] यीशु मसीह जीवित थे, तो उन्होंने ये काम नहीं किये। मैंने जो सूत्र पढ़े हैं उनके अनुसार, शाक्यमुनि बुद्ध ने हमें उनकी पूजा करने या कोई धूपबत्ती जलाने के लिए नहीं कहा था। नहीं। ये हम हैं जिन्होंने उन चीजों का निर्माण किया।(मास्टर, मैं इस विषय में आपसे सहमत हूं। क्योंकि मैं भी पूजा-पाठ नहीं करती।) वाह! बहुत बढ़िया! फिर, मुझे क्यों परेशान कर रहे हो? (क्योंकि मैं भी कोई आशीर्वादपूर्ण पुरस्कार नहीं मांगती।) यह अद्भुत है, आप अद्भुत हैं! वह पहले से ही प्रबुद्ध है, और वह अभी भी मुझसे वे सभी नासमझ प्रश्न पूछ रही है। लेकिन मैं जानती हूं कि आप दूसरों के हित के लिए पूछ रहे हैं। है ना? हाँ। (क्योंकि मैं सोचती हूं कि हमारे आत्मज्ञान प्राप्त करने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हम दुख के सागर - जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति की आशा करते हैं।) हां, हां, हां। (अतः, धन्य पुरस्कार मांगना शाश्वत विश्वास की बात नहीं है।) हाँ, बस मामूली बातें। इसके अलावा, उन धन्य पुरस्कारों का आनंद लेने के लिए, आपको वापस आना होगा और पुनः जन्म लेना होगा। है ना? हाँ। अब आपको सब कुछ समझ आ गया होगा। (नहीं। मैं सोच रही थी कि शायद मैं मास्टर से कुछ बेहतर बातें सुन सकूंगी।) हाँ। बेहतर तो वही है जो आपने अभी कहा - दुख के सागर से मुक्ति पाना। यदि आप यह चाहते हैं, तो हमें अवश्य... अपनी मूल प्रकृति को जानने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।(तो फिर, हमें “त्याग” को किस प्रकार देखना चाहिए?) किस बात पर, प्रिये? (त्याग – दुःख को पहचानना और उसका त्याग करना। (इसका अर्थ है इस संसार से तंग आ जाना और इसे त्याग देना।) जब हम प्रबुद्ध हो जायेंगे, तो हम संसार से घृणा नहीं करेंगे, लेकिन हम उससे आसक्त भी नहीं होंगे। हम तटस्थ रहेंगे। हम वही करते हैं जो हमें करना चाहिए - जब हमें भूख लगती है, हम खाते हैं; जब हम थक जाते हैं, तो हम सो जाते हैं; अगर हमारे पास पैसा नहीं है, तो हम कुछ कमा लेते हैं। लेकिन अंदर हमारे पास कुछ और है, जिसका पैसे, सोने, खाने, बच्चों, पति, पत्नी, रिश्तेदारों या दोस्तों से कोई लेना-देना नहीं है। यही तो हम चाहते हैं। यह जीवन-पर्यन्त हमारे साथ है। यह तो शुरू से ही हमारे पास था, जो कि हमारा वास्तविक स्व है, पूर्णतः मुक्त। और हम स्पष्ट रूप से जानते हैं कि हमें किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं है। हां, जब हम इसे पा लेते हैं, हम दुख के सागर से मुक्त हो जाते हैं। दरअसल, हम मूलतः स्वतंत्र थे। मैं जानती हूं कि आप यह समझते हैं। वो ठीक है।(यदि हमें अपने माता-पिता, पत्नी, पति या बच्चों और अन्य सभी लोगों से कोई लेना-देना नहीं है, तो क्या इसका मतलब यह है कि हमारा दिल एक अकेला दिल होगा?) नहीं! मैं आपके वास्तविक स्व के बारे में बात कर रही हूँ, आपकी भावनाओं और रिश्तों के बारे में नहीं। आप अभी भी अपने माता-पिता से उतना ही प्यार करते हैं - यह भावना है। आपका वह हिस्सा आपके वास्तविक स्वरूप से भिन्न है। मेरे कहे का मतलब समझे? वास्तविक स्व में सब कुछ सम्मिलित है। मेरा कहने का तात्पर्य है, कि अपने वास्तविक स्वरूप को पाने के बाद भी, अपने माता-पिता के बिना, बिना किसी धन या किसी रिश्ते के, आप उन्हें नहीं खोएंगे। फिर भी आप खुश होंगे। आप अभी भी समझेंगे और जानेंगे कि आप वास्तव में कौन हैं। मेरा यही मतलब है। मैं यह नहीं कह रहा कि आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद आप सारे रिश्ते तोड़ देंगे। नहीं! ऐसा कैसे? हमारे यहां लोग अभी भी शादी करते हैं और बच्चे पैदा करते हैं।मेरा तात्पर्य यह है कि आत्मा हमारी हर चीज से ऊपर है - सभी सीमाओं, सभी भौतिक संपत्तियों, दुनिया के सभी रिश्तों से ऊपर। इसलिए, यदि किसी व्यक्ति का कोई प्रेमी नहीं है, वह विवाहित नहीं है, उनके कोई बच्चे नहीं हैं तो भी वह वैसे ही प्रबुद्ध और खुश रहेगा। खुश रहने के लिए किसी को संपत्ति, बच्चों या पति या पत्नी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। मेरा यही मतलब है। रिश्ता रखना ठीक है। मेरा यह मतलब नहीं है कि आत्मज्ञान के बाद आप सब कुछ छोड़ देते हैं। अन्यथा, अपने जीवन का क्या करें? मुझे लगता है कि आप बेहतर और गहराई से समझते हैं।(तो फिर मास्टरदेव, संवेदनशील जीवों के साथ कर्म सम्बन्ध के बारे में आपका क्या विचार है?) संवेदनशील जीवों के बारे में मेरा दृष्टिकोण? (संवेदनशील जीवों के साथ आत्मीयता।) आपका क्या मतलब है? (सभी जीवों के साथ आत्मीयता। आत्मीयता। लोगों के बीच संबंध।) आपका मतलब उनसे मेरे रिश्ते से है, या उनके वास्तविक स्व से? (इस संसार में लोगों के बीच आत्मीयता के बारे में आपका क्या विचार है?) (उदाहरण के लिए, मेरा आशय मेरे पिता के साथ मेरे लगाव से है।) अच्छा ऐसा है। (मेरी माँ के साथ या मास्टर के साथ मेरी आत्मीयता। मेरे सहपाठियों और दोस्तों के साथ मेरा रिश्ता।) यह आप सभी जानते हैं। यह पिछले जन्मों के कर्मों से संबंधित है... (कर्म प्रभाव) हां, हां, हां। पिछले जन्मों। उदाहरण के लिए, अतीत में आप एक-दूसरे की बहुत परवाह करते थे, या... भले ही आप बहुत करीबी दोस्त हैं, एक-दूसरे की बहुत मदद करते हों और एक-दूसरे का बहुत ख्याल रखते हों। अगले जन्म में आप माता-पिता और बच्चे, माता और पुत्र, या पति और पत्नी के रूप में लौट सकते हैं। क्या? (तो क्या इसे ही कर्म संचय कहते हैं? हां, हां, हां। कर्म संचित होता रहता है और घिसटता रहता है। (यह आपकी अंतर्निहित रुझान का अनुसरण करता है और एक साथ ढेर हो जाता है।) हां, हां, हां। लेकिन इसका हमारे वास्तविक स्व से कोई संबंध नहीं है। (ऐसा ही है, मास्टरजी।) इतना भी नहीं।(क्या कर्म का हमारे हृदय से कोई संबंध है? संबंधित नहीं?) मेरा मतलब है हमारा वास्तविक स्व। (असली दिल।) मूलतः इसका किसी भी चीज़से संबंध नहीं है, क्योंकि इसका संबंध सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से है। मूलतः, हम अकेले हैं। और फिर, मेरे पास एक पिता है, एक माँ है... मूलतः हम सब एक थे। इस भ्रामक दुनिया में गिरने के बाद, हम व्यक्तिओं बन जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक का एक नाम और एक परिवार होता है। छोटी उम्र से, लोग उन्हें हमेशा "श्रीमती वांग" के नाम से जानते आये हैं। आपका जन्म हुआ, फिर आप बड़े हुए, और फिर आप कुछ निश्चित परिस्थितियों में सीमित हो गए, और आप स्वयं को उसी रूप में पहचानते हैं।(तब, यदि हम जीवों के साथ इन आत्मीयताओं से दूर होने में असफल रहे, तो क्या हम जन्म-मृत्यु के दुःख सागर में भटकते रहेंगे?) अलबत्त, अलबत्त। इसलिए हमें प्रबुद्ध होना होगा, हमें इसे देखना होगा। कि हम एक हैं, कि हम यह शरीर नहीं हैं। इसीलिए हमें प्रबुद्ध होना होगा और अपनी महान आत्मा, अपनी स्व प्रकृति को पहचानना होगा, जो कि ब्रह्मांड के साथ एक है। यह मेरी जिम्मेदारी है।(फिर, अन्य जीवों के साथ आत्मीयता के विषय में, क्या आपको लगता है कि हमें अभी भी दूसरों के साथ आत्मीयता बनानी चाहिए?) यह पहले से ही बनाया गया था। आप क्यों कहते हैं कि हमें “ऐसा करना चाहिए”? हम जहां भी जाते हैं, स्वाभाविक रूप से हमारे बीच घनिष्ठता उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए, जब आप इस दुनिया में आएंगे, तो चाहे आप कुछ भी करना चाहें, आपके माता-पिता अवश्य होंगे। मेरी तरह, शाक्यमुनि बुद्ध की तरह, किसी भी अन्य की तरह - चाहे हम चाहें या नहीं। इस मायावी संसार में आकर यह नाटक, यह खेल खेलने से ही आत्मीयताएं उत्पन्न होती हैं। लेकिन यह आत्मीयता होना, आत्मीयता न होने के समान है।एक प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, आत्मीयता का होना या न होना एक समान बात है। जो कोई व्यक्ति आत्मज्ञानी नहीं है, उनके पास केवल पिता और माता ही हैं। उनके बिना, वह मर जाएगा। अपनी प्रेमिका के बिना, वह रो-रोकर मर जाएगा या आत्महत्या कर लेगा। एक प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, पाना और न पाना एक ही बात है। अगर आत्मीयता है, तो उस नाटक में अपनी भूमिका निभाओ। यह बस एक भूमिका है। बस इतना ही। इसे समझाना आसान नहीं है। जब मैं आपको यह समझाती हूं तो मैं इसे पूरी तरह से समझ लेती हूं, लेकिन मुझे डर है कि आप नहीं समझ पाओगे। मैं इसे बहुत अच्छी तरह समझती हूं और जानती हूं कि मैं किस बारे में बात कर रही हूं। मैं इसे बहुत स्पष्ट रूप से देख रही हूँ।Photo Caption: चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में आगे बढ़ना आपको मज़बूत बनाता है